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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4197
आईएसबीएन :0000

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अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र

अदृश्य चेतना का दृश्य उभार


जिस क्षेत्र में जिस प्रकार की गतिविधियाँ लम्बे समय तक चलती रहती हैं वहाँ का वातावरण उस प्रक्रिया से प्रभावित होता है। वहाँ रहने वाले उस चिर निर्मित प्रवाह से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। कोई विरले ही ऐसे होते हैं, जो उस दबाव या आकर्षण को अस्वीकार कर सकें। इसलिए जिन्हें जिस स्तर का बनना होता है, वे वहाँ खिंचते घिसटते जा पहुँचते हैं। मन उधर ही चलता हैं। वातावरण भी अपने अनुरूप व्यक्तियों को अपनी ओर खींचता है, धातुओं की खदानें भी इसी प्रकार बनती हैं। जहाँ धातु खण्ड बड़ी मात्रा में जमा हो जाते हैं, वहाँ एक प्रकार का चुम्बकत्व पैदा हो जाता है। उसकी आकर्षण शक्ति दूर-दूर तक बिखरे हुए उसी जाति के धातु कणों को धीरे-धीरे अपनी ओर खींचती रहती है। फलतः वह संग्रह निरन्तर बढ़ता रहता है और छोटी खदान कुछ ही समय में बड़ी बन जाती है। ऐसा ही आकर्षण व्यक्तियों में भी देखा गया है, क्षेत्र में भी और वातावरण में भी।

शहरी सुविधाएँ अभावग्रस्त ग्रामीणों अथवा बाबू स्तर के मन चले लोगों को अनायास ही खींचती चली जाती हैं। स्वभाव अनुरूप उन्हें अदृश्य निमन्त्रण मिलता है और ऐसा संयोग बन जाता है, जिससे वे अपने मनचाहे स्थान पर जा पहुँचने के लिए कोई संयोग प्राप्त कर सकें। जुआघर, शराबखाने, व्यभिचार के अड्डे भी अपने-अपने ढंग के लोगों को अदृश्य आमन्त्रण देकर बुलाते रहते हैं। फलतः एक ही प्रकृति के लोगों के गिरोह उन केन्द्रों से सम्बद्ध हो जाते हैं। यही बात सत्संगों के सम्बन्ध में भी हैं। उत्कृष्ट स्तर के लोग भी परस्पर सम्बन्ध बनाते और एक श्रृंखला में बँधते देखे गए हैं। चोर-उचक्कों से लेकर तस्करों हत्यारों तक के गिरोह इसी प्रकार बनते हैं। सन्त-सज्जनों की जमातें भी इसी आधार पर बनती देखी गयी हैं। सम्भवतः देवलोक और नरक भी इसी सिद्धान्त के अनुरूप बने हैं। शोध संस्थानों से लेकर पुस्तकालयों तक में एक ही प्रकृति के लोग पाये जाते हैं। इससे प्रकट है कि वातावरण और स्वभाव का आपस में तारतम्य बैठ जाता है। हिमालय के सिद्ध पुरुषों के सम्बन्ध में भी यही है और देवात्मा क्षेत्र के सम्बन्ध में भी। वहाँ का परिकर बढ़ता भी जाता है और समर्थ-बलिष्ठ होने की स्थिति में भी होता है। लंका के छोटे से क्षेत्र में रावण का सुविस्तृत परिकर जमा हो गया था। नैमिषारण्य में सूत और शौनक समुदाय का कथा सत्संग जमा ही रहता था। इसी प्रकार हिमालय का देवात्मा क्षेत्र भी क्रमशः अधिक विस्तृत और परिपुष्ट होता चला गया हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

महाभारत के लिए कृष्ण को उपयुक्त भूमि की तलाश करनी थी, जहाँ भाई-भाई की लड़ाई के बीच मोह आड़े न आने लगे। दूतों को भेजा और क्षेत्रों के प्रचलन का तलाश कराया, तो मालूम पड़ा कि कुरुक्षेत्र के इर्द-गिर्द भाई-भाई के साथ निर्ममतापूर्वक मारकाट करते रहने की घटनाएँ अधिक होती हैं। भूमि संस्कारों के प्रभाव को समझते हुए उसी क्षेत्र में महाभारत रचाए जाने का निश्चय हुआ। इसी प्रकार की एक पौराणिक घटना श्रवणकुमार की भी है। उनने कन्धे पर रखी काँवर में बैठे अन्धे माता-पिता को नीचे उतार दिया था और कहा था आप लोग पैदल चलें। मैं रस्सी के सहारे आपको रास्ता बता सकता हूँ। पैर ठीक होते हुए भी आप कन्धे पर क्यों सवार होते हैं ? पिता-माता पुत्र के यश को व्यापक बनाना चाहते थे। उसमें इस प्रकार व्यवधान आया देखकर उनने जान लिया कि यह कुसंस्कारी भूमि का प्रभाव है। उनने पुत्र को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि रात्रि को वहाँ विराम न किया जाए। जल्दी वह क्षेत्र पार कर लिया जाए। जैसे ही वह परिधि पार हुई, श्रवणकुमार के विचार बदले। उसने माता-पिता से क्षमा याचना की और फिर कन्धे पर काँवर में बिठाकर पहले की ही भाँति आगे की यात्रा सम्पन्न की। यह संस्कारित भूमि का प्रभाव है, जो मनुष्य में उत्कृष्टता एवं निकृष्टता के उतार-चढ़ाव उत्पन्न करता रहता है। हिमालय के देवात्मा क्षेत्र के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती हैं। उसमें सूक्ष्म शरीरधारी सिद्ध पुरुषों का तो निवास रहता ही है। साथ ही उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप अन्यान्य साधन भी उत्पन्न एवं विकसित हुए हैं। वहाँ पाई जाने वाली वस्तुओं में अपनी विशेषता है। वहाँ रहने वाले मनुष्यों और प्राणियों में विशेष प्रकार का स्वभाव भी पाया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र देवात्मा हिमालय
  2. देवात्मा हिमालय क्षेत्र की विशिष्टिताएँ
  3. अदृश्य चेतना का दृश्य उभार
  4. अनेकानेक विशेषताओं से भरा पूरा हिमप्रदेश
  5. पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि
  6. तीर्थस्थान और सिद्ध पुरुष
  7. सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  8. सूक्ष्म शरीरधारियों से सम्पर्क
  9. हिम क्षेत्र की रहस्यमयी दिव्य सम्पदाएँ

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